Samas in Hindi: हिंदी भाषा में शब्द निर्माण की तीन विधियां होती हैं जिनमें से समास तीसरी विधि है, जिसके द्वारा नए शब्दों का निर्माण किया जाता है। इस आर्टिकल में हम विस्तार से समास की परिभाषा, समास के भेद और उदाहरण के बारे में जानेंगे.
समास की परिभाषा (Samas Ki Paribhasha) –
समास का शाब्दिक अर्थ होता है ‘छोटा रूप’ या ‘संक्षिप्तीकरण’. जब दो या दो से अधिक शब्दों के लिए एक शब्द का निर्माण किया जाता है तो उसे समास कहते हैं. उदहारण के लिए ‘यथाशक्ति’ – शक्ति के अनुसार, रातोंरात – रात ही रात में, रसोईघर – रसोई का घर, इत्यादि.
हिन्दी व्याकरण में समास का प्रयोग कम से कम शब्दों में अधिक बात कहने के लिए किया जाता है. समास (सम् + आस) से मिलकर बना है. समास के नियमों के अंतर्गत बने शब्द को सामासिक शब्द कहा जाता है.
- कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को जहां दर्शाया जा सके वही समास होता है।
- जिन दो शब्दों से मिलकर समास बनता है उन दोनों का अर्थ अलग होता है और जब इन दोनों के मेल से तीसरा शब्द बनता है तो उसका अर्थ भी इन दोनों से अलग होता है।
- समास शब्द की रचना दो शब्दों के मेल से ही होती है, किसी एक शब्द से समास नहीं बन सकता है।
सामासिक शब्द या समस्तपद – समास के नियमों के अनुसार बनाए गए शब्द सामासिक शब्द या समस्त पद कहलाते हैं।
पूर्वपद एवं उत्तरपद – सामासिक शब्द का जो पहला पद होता है वह पूर्वपद कहलाता है एवं जो दूसरा या आखरी पद होता है वह उत्तरपद कहलाता है।\
समास के उदाहरण –
- राजा का पुत्र – राजपुत्र।
- मूर्ति बनाने वाला – मूर्तिकार।
- कमल के समान चरण – चरणकमल।
- घोड़े पर सवार – घुड़सवार।
- चित्र बनाने वाला – चित्रकार।
- देश का भक्त – देशभक्त।
समास के भेद (Samas Ke Bhed)
समास के 6 भेद होते हैं। इन्हें समास का प्रकार भी कहा जाता है –
- तत्पुरुष समास
- अव्ययीभाव समास
- कर्मधारय समास
- द्विगु समास
- द्वंद समास
- बहुव्रीहि समास
तत्पुरुष समास
जिस समास में उत्तरपद प्रधान एवं पूर्व पद गौण होता है। वहां तत्पुरुष समास होता है। तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas) का पूर्व पद विशेषण और उत्तरपद विशेष्य होता है। तत्पुरुष समास का जब विग्रह किया जाता है तब समस्त कारकों के कारकीय चिन्ह जिनका समास करते समय उपयोग नहीं किया गया था आप पुनः शब्द में जोड़ दिए जाते हैं जैसे – भावमुक्त भाव से मुक्त (यहां ‘से’ अपादान कारक का चिन्ह है)
उदाहरण –
- युद्धक्षेत्र – यहां पर पूर्वपद ‘युद्ध’, कारकीय चिन्ह ‘का’ और उत्तरपद ‘क्षेत्र’ है।
- कुलश्रेष्ठ – यहां पर पूर्वपद ‘कुल’ , कारकीय चिन्ह ‘में’ और उत्तरपद ‘श्रेष्ठ’ है।
तत्पुरुष समास के भेद –
तत्पुरुष समास के अंतर्गत दो तरह के समास आते हैं
(i) कारकीय चिन्ह युक्त तत्पुरुष समास – तत्पुरुष समास के इस वर्ग में दोनों ही पदों के बीच कोई ना कोई कारकीय चिन्ह उपयोग किया जाता है तथा समस्त पद बनाते वक्त उस कारकीय चिन्ह का त्याग कर दिया जाता है और विग्रह के समय पुनः उसे जोड़ दिया जाता है।
उदाहरण – रोगयुक्त = रोग से युक्त।
प्रेमातुर = प्रेम से आतुर।
कारकीय चिन्हों के आधार पर तत्पुरुष समास के निम्न भेद है –
1. कर्म तत्पुरुष (चिन्ह – को) –
- सुखप्राप्त – सुख को प्राप्त।
- विदेशगत – विदेश को गत।
- अवलोकगमन- अवलोक को गमन।
2. करण तत्पुरुष (चिन्ह – से /के द्वारा) –
- मदमस्त – मद से मस्त।
- शोकाकुल – शोक से आकुल।
- गुणमुक्त – गुणों से मुक्त।
- मनचाहा – मन से चाहा।
3. संप्रदान तत्पुरुष (चिन्ह – के लिए) –
- दानपेटी – दान के लिए पेटी।
- पूजा घर – पूजा के लिए घर।
- पाठशाला – पाठ के लिए शाला।
- सत्याग्रह – सत्य के लिए आग्रह।
4. अपादान तत्पुरुष (चिन्ह – ‘से’ अलग होने के अर्थ में)
- नेत्रहीन – नेत्रों से हीन।
- रोगमुक्त – रोग से मुक्त।
- कार्यमुक्त – कार्य से मुक्त।
- जलहीन – जल से हीन।
5. संबंध तत्पुरुष (चिन्ह – का,की, के)
- सिरदर्द – सिर का दर्द।
- सेनानायक – सेना का नायक।
- मातृभूमि – मात्र की भूमि।
- प्राणनाथ – प्राणों के नाथ।
6. अधिकरण तत्पुरुष (चिन्ह – में, पर)
- व्यवहारकुशल – व्यवहार में कुशल।
- गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश।
- जगबीती – जग पर बीती।
(ii) कारकीय चिन्ह रहित तत्पुरुष समास – इस समास के अंतर्गत दो तरह के समास आते हैं।
- वह समास जिनमें पहला पद कोई निषेधवाचक अवयव शब्द होता है तथा विग्रह करते समय पूर्व पद के स्थान पर ‘न’ को जोड़ दिया जाता है। यह समास नञ् तत्पुरुष समास कहलाता है।
उदाहरण –
- असभ्य इसका विग्रह होगा ‘न सभ्य’।
- अनिद्रा – न निद्रा।
- असफल – न सफल।
- अकारक – न कारक।
- दूसरे वे तत्पुरुष समास होते हैं जिनके दोनों पदों के बीच विशेषण – विशेष्य के अलावा उपमेय – उपमान का संबंध होता है तथा उन्हें विग्रह करते समय उत्तरपद की विशेषता में सहयोग देने वाले शब्द समूह को जोड़ दिया जाता है। इस वर्ग में 2 समास आते हैं कर्मधारय तथा द्विगु समास।
अव्ययीभाव समास
जिस समास का पहला पद अविकारी शब्द होता है उस समास को अव्ययीभाव समास कहते हैं। (Avyayibhav Samas in Hindi)
जैसे – यथाशक्ति मे अविकारी शब्द ‘यथा’ है और इसका विग्रह होगा ‘शक्ति के अनुसार’।
उदाहरण –
- आमरण – यहां पर ‘आ’ अव्यय है और ‘मरण तक’ उसका विग्रह।
- अनुरूप – यहां पर ‘अनु’ अव्यय और ‘रूप के अनुसार’ शब्द का विग्रह है।
कर्मधारय समास
कर्मधारय समास के दोनों पदों में विशेषण – विशेष्य और उपमेय – उपमान के संबंध हो सकते हैं। उपमान भी उपमेय की विशेषता बताने का ही काम करता है। (Karmdharaya Samas)
विशेषण – विशेष्य संबंध बताने वाले कर्मधारय समास
- नीलगाय – यहां पर विग्रह होगा ‘नीली है जो गाय’ , साथ ही विशेषण होगा ‘नील’ और विशेष्य होगा ‘गाय’ ।
- पुरुषोत्तम – यहां पर विग्रह होगा ‘उत्तम है जो पुरुष’, इसके साथ ही विशेषण है ‘उत्तम’ और विशेष्य है ‘पुरुष’ ।
- अंधकूप – इसका विग्रह है ‘अंधा है जो कूप’ ।
- अंधविश्वास – ‘अंधा है जो विश्वास’ ।
उपमेय – उपमान संबंध वाले कर्मधारय समास
समास के इस संबंध में पूर्व पद के स्थान पर उपमेय और उपमान कुछ भी आ सकता है।
- भुजदंड – इसका विग्रह है ‘दंड के समान भुजा’, यहां पर भुज उपमेय और दंड उपमान है।
- मृगनयन – इसका विग्रह है मृग के समान नयन। यहां पर नेत्रों की उपमा मृग से दी गई है और नेत्र उपमेय है। जिस वस्तु, व्यक्ति की उपमा दी जाती है वह उपमेय और जिस व्यक्ति वस्तु से दी जाती है उसे उपमान कहते हैं।
- देहलता – देव रूपी लता।
- वचनामृत – अमृत के समान वचन।
द्विगु समास
द्विगु समास तत्पुरुष समास का उपभेद होता है इसलिए इसका भी पूर्व पद गौण तथा उत्तरपद प्रधान होता है। द्विगु समास (Dwigu Samas) तथा कर्मधारय समास में सबसे बड़ा अंतर होता है कि द्विगु समास का पूर्व पद संख्यावाची विशेषण होता है जबकि कर्मधारय समास का पूर्व पद अन्य कोई भी विशेषण हो सकता है.
द्विगु समास का उत्तरपद किसी समूह का बोध कराता है। यदि विग्रह करते समय उत्तर पद के साथ समूह या समाहार शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है तो पूर्व पद संख्यावाची होते हुए भी कर्मधारय समास ही कहलाएगा।
उदाहरण –
- चतुर्भुज – चार भुजाएं हैं जो।
- पंचतंत्र – पांच तंत्र है जो ।
- चवन्नी – चार आने हैं जो।
द्वंद्व समास
द्वंद्व समास में कोई भी पद गौण नहीं होता है बल्कि दोनों ही पद प्रधान होते हैं। समस्त पद बनाते समय दोनों पदों को जोड़ने वाले अवयवों जैसे कि, और, तथा,या आदि को हटा दिया जाता है तथा विग्रह करते समय इन को पुनः पदों के भी जोड़ दिया जाता है। (Dwand Samas)
उदाहरण –
- दाल – चावल – दाल और चावल।
- छोटा – बड़ा – छोटा और बड़ा।
- राधा – कृष्ण – राधा और कृष्ण।
- अन्न – जल – अन्न और जल।
- रात – दिन – रात और दिन।
बहुव्रीहि समास
इस समास में दोनों ही पद गौण होते हैं। बहुव्रीहि समास में ना तो पूर्व पद और ना ही उत्तर पद प्रधान होता है, इसके दोनों पद परस्पर मिलकर किसी तीसरे पद के बारे में कुछ कहते हैं और यह तीसरा पद प्रधान होता है। (Bahuvriha Samas)
उदाहरण –
- तिरंगा – तीन रंग है जिसके।
- विषधर – विष को धारण किया है जिसने।
- सुलोचना – सुंदर लोचन है जिसके।
समास की विशेषताएं –
- समास 2 पदों से मिलकर बनता है।
- दो अलग-अलग पद मिलकर एक संयुक्त पद का रूप धारण कर लेते हैं।
- 2 पदों के बीच की विभक्ति का लोप होता है।
- संस्कृत भाषा में समास होने पर संधि होती है किंतु हिंदी भाषा में ऐसी विधि नहीं होती है।
- समास के 2 पदों में से कभी पहला तो कभी दूसरा पद प्रधान होता है और कभी कभी दोनों ही पद प्रधान हो सकते हैं।
- दो अलग अर्थ रखने वाले पदों से मिलकर एक संयुक्त अर्थ रखने वाले नये पद का निर्माण होता है।
समास विग्रह (Samas Vigrah)-
समस्त पद के दोनों पदों को पृथक करने की प्रक्रिया समास विग्रह कहलाती है। जैसा कि नाम से ही दर्शाया जा रहा है विग्रह का मतलब होता है अलग करना। पदों को पृथक करते समय दोनों पदों के बीच के विभक्ति और कारकीय चिन्हों को भी फिर से जोड़ दिया जाता है।
जैसे – ‘कचरागाड़ी’ का विग्रह करने पर कार्य के चिन्ह ‘के लिए’ को फिर से जोड़ दिया जाएगा। इसका विग्रह होगा ‘कचरे के लिए गाड़ी’
‘यशप्राप्त’ यहां पर इसका विग्रह होगा ‘यश को प्राप्त’ कारकीय चिन्ह ‘को’ है, जिसे पुनः स्थापित कर दिया जाएगा।
- दाल – चावल – दाल और चावल।
- पीतांबर – पीला है जो अंबर।
- असफल – जो सफल ना हो।
- दशानन – 10 है जिसके आनन।
इस तरह से हम समझ सकते हैं कि समास विग्रह प्रक्रिया के दौरान दोनों पदों को अलग कर दिया जाता है और दोनों ही पदों के बीच कोई एक कारक चिन्ह का उपयोग किया जाता है। सरल भाषा में अगर कहा जाए तो समास विग्रह वह प्रक्रिया है जिसमें समस्त पद के दोनों हिस्सों को अलग कर दिया जाता है तथा समस्त पद बनाने से पहले जिन कारकीय चिन्हों को हटा दिया गया था उन्हें पुनः दोनों ही पदों में शामिल दिया जाता है।
समास और संधि में अंतर –
समास और संधि में विग्रह को लेकर हमेशा ही भ्रम की स्थिति बनी रहती है। समास प्रक्रिया का संबंध दो शब्दों के मेल से एक नए शब्द बनने के साथ होता है जबकि संधि का संबंध किसी शब्द की दो ध्वनियों के बीच मेल से होता है। आसान शब्दों में अगर कहा जाए तो संधि करते समय किसी शब्द की 2 ध्वनियों का मेल किया जाता है, जबकि समास में 2 शब्दों का मेल होता है।
- समास में 2 शब्दों और संधि में 2 ध्वनियों का मेल होता है।
- समास प्रक्रिया में दो भिन्न अर्थ वाले शब्द मिलते हैं और किसी नए शब्द की रचना करते हैं जबकि संधि में ऐसा नहीं होता है।
- समास विग्रह करते समय दो अलग-अलग अर्थ वाले शब्द बनते हैं जबकि संधि में यह प्रक्रिया नहीं होती है।
कर्मधारय तथा द्विगु समास में अंतर
- द्विगु समास का पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होता है, जबकि कर्मधारय समास का पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होने के अलावा कोई भी दूसरा विशेषण हो सकता है।
- द्विगु समास का पूर्व पद संख्यावाचक ही होता है, जबकि कर्मधारय समास का पूर्व पद प्रायः गुणवाचक विशेषण होता है।
- द्विगु समास का विग्रह करते समय उत्तर पद के बाद समूह या समाहार जैसे शब्द का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है, जबकि कर्मधारय समास का विग्रह करते समय उत्तरपद के साथ समूह या समाहार शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है।
द्विगु तथा बहुव्रीहि समास में अंतर
- द्विगु समास में समस्त पद का पहला पद गौण होता है तथा उत्तरपद प्रधान होता है, जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद के दोनों पद गौण होते हैं तथा तीसरा बाहरी पद प्रधान होता है।
- द्विगु समास का पहला पद संख्यावाची विशेषण होना अनिवार्य है, जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद के दोनों पद मिलकर तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं।
- द्विगु समास का विग्रह करते समय उत्तर पद के साथ समूह समाहार शब्द जोड़े जाते हैं जबकि बहुव्रीहि समास का विग्रह करते समय समूह समाहार जैसे शब्द नहीं जोड़े जाते हैं।
100+ समास के उदाहरण
नीचे टेबल में हमने 100 से ज्यादा समस्त पदों के उदाहरण समास के नाम और समस विग्रह के साथ उपलब्ध कराए हैं.
तत्पुरुष समास के उदाहरण
समस्त पद / शब्द | समास विग्रह |
शोकाकुल | शोक से व्याकुल |
मदांध | मद से अंधा |
इश्वरप्रदत्त | इश्वर द्वारा प्रदत्त |
आँखोंदेखी | आँखों से देखी |
भुखमरा | भूख से मरा |
स्वरचित | स्वयं द्वारा रचित |
गृहागत | घर को आया हुआ |
तुलसीकृत | तुलसी द्वारा कृत (रचित) |
मरणासन्न | मरने को पहुंचा हुआ |
ग्रामगत | ग्राम को गया हुआ |
अतिथ्यर्पण | अतिथि को अर्पण |
सर्वप्रिय | सबको प्रिय |
गिरहकट | गिरह (जेब) काटने वाला |
जनप्रिय | जनता को प्रिय |
पुण्यदान | पुण्य के लिए दान |
भयभीत | भय से भीत |
वायुयान | वायु में चलने वाला यान |
समयानुसार | समय के अनुसार |
मताधिकार | मत का अधिकार |
देवालय | देवों का आलय |
जीवनदान | जीवन का दान |
श्रमदान | श्रम का दान |
जीवनसाथी | जीवन का साथी |
लक्ष्यभ्रष्ट | लक्ष्य से भ्रष्ट |
धर्माविमुख | धर्म से विमुख |
गुणहीन | गुण से हीन |
पथभ्रष्ट | पथ से भ्रष्ट |
डाकगाड़ी | डाक के लिए गाड़ी |
व्यायामशाला | व्यायाम के लिए शाला |
कर्मधारय समास उदाहरण
समस्त पद / शब्द | समास विग्रह |
मधु-मादन | मधु के सामान मदन |
वज्रांग | वज्र के सामान हैं अंग जिसके |
दन्तमुक्ता | मोटी जैसे दांत |
हेमलता | हेम की लता के सामान (सोने के लता के सामान) |
मीनाक्षी | मछली के सामान आँखों वाली |
कुसुमकोमल | कुसुम (कमल) सा कोमल |
कठपुतली | काठ से बनी पुतली |
गुरुभाई | गुरु के संबंध से भाई |
बैलगाड़ी | बैलों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी |
वचनामृत | वचन रूपी अमृत |
कमलनयन | कमल के सामान नयन |
पीताम्बर | पीले रंग का अम्बर (वस्त्र) |
सज्जन | सैट है जो जन |
घनश्याम | घन के सामान श्याम |
करकमल | कमल के सामान कर(हाथ) |
अव्ययीभाव समास के उदाहरण
समस्त पद / शब्द | समास विग्रह |
हाथोंहाथ | हाथ ही हाथ में |
यथाशीघ्र | यथा शीघ्र (जितना जल्दी हो सके) |
प्रत्यक्ष | प्रति + अक्ष (आँखों के सामने) |
यथासंभव | जितना संभव हो सके |
आजन्म | जन्म से लेकर |
प्रतिवर्ष | प्रत्येक वर्ष |
आमरण | मरने तक |
प्रतिदिन | प्रत्येक दिन |
दिनोंदिन | दिन प्रतिदिन |
बीचोंबीच | बीच ही बीच में |
आजीवन | जीवन भर |
यथानियम | नियम के अनुसार |
बेकाम | बिना काम के |
रातोंरात | रात ही रात में |
यथोचित | जो उचित हो |
द्विगु समास के उदाहरण
समस्त पद / शब्द | समास विग्रह |
नवरत्न | नौ रत्नों का समूह |
तिरंगा | तीन रंगों वाला |
सप्तऋषि | सात ऋषियों का समूह |
सप्ताह | सात दिनों का समूह |
चौराहा | चार राहों का क्षेत्र |
नवग्रह | नौ ग्रहों का समूह |
पञ्चनदी | पांच नदियों का समूह |
शताब्दी | सौ वर्षों का समय |
चौगुनी | चार गुनी |
पञ्चतत्त्व | पांच तत्वों का समूह |
त्रिफला | तीन फलों का समूह |
पञ्चतंत्र | पांच तंत्रों का समूह |
त्रिभुवन | तीन भवनों का समूह |
त्रिलोक | तीन लोकों का समूह |
पंचामृत | पांच अम्रतों का समूह |
द्वंद समास के उदाहरण
समस्त पद / शब्द | समास विग्रह |
आगे – पीछे | आगे और पीछे |
दिन-रात | दिन और रात |
कर्तव्याकर्तव्य | कर्त्तव्य (फर्ज) और अकर्तव्य |
तन-मन-धन | तन, मन और धन |
देश-विदेश | देश और विदेश |
दूध-दही | दूध और दही |
आटा-दाल | आटा और दाल |
हानि-लाभ | हानि और लाभ |
उल्टा-सीधा | उल्टा और सीधा |
जन्म-मरण | जन्म और मृत्यु |
धर्म-अधर्म | धर्म और अधर्म |
स्वर्ग-नरक | स्वर्ग और नरक |
यश-अपयश | यश और अपयश |
अमीर-गरीब | अमीर और गरीब |
पाप-पुण्य | पाप और पुण्य |
बहुव्रीहि समास के उदाहरण
समस्त पद / शब्द | समास विग्रह |
पीताम्बर | पीला है अम्बर जिसका |
विषधर | विष को धारण करने वाला |
म्रत्युन्जय | मृत्यु को जीतने वाला |
दिगंबर | दिशाएं ही हैं अम्बर जिसके |
चौमासा | चार मॉस हैं जिसमें |
पंकज | पक (कीचड़) में जन्म लेने वाला |
अल्पबुद्धि | अल्प है बुद्धि जिसकी |
चतुर्मुख | चार मुख वाला |
म्रगनयनी | म्रग के सामान नयनों वाली |
चक्रधर | चक्र को धारण करने वाला (विष्णु) |
निशाचर | निशा (रात्रि) में चारण करने वाला |
त्रिलोचन | तीन आँखों (लोचन) वाला |
दीर्घबाहु | लम्बी भुजाओं वाला |
चतुर्मुख | चार हैं मुख जिसके – ब्रह्मा |
नीलकंठ | नीला है कंठ (गला) जिसका – शिव |
तपोधन | ताप ही है धन जिसका |