Sandhi in Hindi – संधि एवं संधि विच्छेद दोनों ही हिन्दी व्याकरण के अति-महत्वपूर्ण अंग हैं, इस आर्टिकल में आपको संधि की परिभाषा, संधि-विच्छेद के नियम, प्रकार एवं उदाहरणों की जानकारी दी गई है.
संधि की परिभाषा | Sandhi Ki Paribhasha
जब दो वर्णों या शब्दों के परस्पर मेल से विकार या परिवर्तन उत्पन्न होता है तो उसे ही संधि कहते हैं. दो शब्दों के आपस में मिलने पर प्रथम शब्द की अंतिम ध्वनि और अंतिम शब्द की प्रथम ध्वनि से मिलकर जो परिवर्तित धवनी पैदा होती है वह संधि कहलाती है.
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है ‘मेल’, संधि शब्द (सम् + धि) से मिलकर बना है. संधि स्वरुप बने शब्दों को अलग करना संधि विच्छेद कहलाता है. उदहारण के लिए विद्यालय (विद्या + आलय), धर्मार्थ (धर्म + अर्थ), रामावतार (राम + अवतार), इत्यादि.
उदाहरण –
- नरेश = नर + ईश (अ+ई = ए में संधि)
- संग्रहालय = संग्रह + आलय (अ+आ = आ में संधि)
- विद्यालय = विद्या + आलय (आ+आ = आ में संधि)
उदाहरण से यह स्पष्ट हो रहा है कि ध्वनियों के मेल से परिवर्तन होकर वर्णों की ‘संधि’ हो रही है। अतः दो वर्णों के परस्पर मेल होने पर मूल रूप में होने वाले परिवर्तन को ‘संधि’ कहते हैं।
संधि विच्छेद क्या होता है? Sandhi Vichchhed
जिस तरह से दो वर्णों का मेल होने पर संधि होती है उसी प्रकार संयुक्त शब्दों को अलग करने की प्रक्रिया संधि विच्छेद कहलाती है.
वर्णों के बीच संधि कई प्रकार से होती है जैसे स्वर और स्वर के बीच, स्वर और व्यंजन के बीच, विसर्ग(:) और स्वर के बीच या विसर्ग और व्यंजन के बीच. जब इन प्रयुक्त वर्णों का विच्छेद किया जाता है तो उसे संधि विच्छेद कहते हैं.
उदाहरण –
- गणेश = गण + ईश
- पुस्तकालय = पुस्तक + आलय
- विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
- अत्यधिक = अति + अधिक
संधि के कितने प्रकार होते हैं? Sandhi Ke Bhed
संधि करने पर जिन वर्णों का मेल होता है वह मेल –
● स्वरों में हो सकता है।
● स्वर और व्यंजन में हो सकता है।
● स्वर और विसर्ग में हो सकता है।
● विसर्ग और व्यंजन में हो सकता है।
वर्णों के इन मेलों के आधार पर संधि को तीन प्रकार में विभाजित किया गया है जो की संधि के प्रकार या संधि के भेद कहलाते हैं –
- स्वर संधि।
- व्यंजन संधि।
- विसर्ग संधि।
स्वर संधि संधि का पहला भेद होता है। स्वर संधि का अर्थ है स्वरों का मेल होना। जब दो स्वरों के मेल होने पर परिवर्तन होता है तब वह स्वर संधि कहलाती है।
हिन्दी भाषा में 11 स्वर होते हैं जब इन स्वरों में किन्ही दो स्वरों के मेल से तीसरा स्वर बनता है तो वहाँ स्वर संधि होती है.
उदाहरण –
- मेघ + आलय = मेघालय (अ + आ = आ)
- पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम ( अ + उ = ओ)
- सदा + एव = सदैव ( आ + ए = ए )
स्वर संधि के भेद
स्वर संधि के 7 प्रकार या भेद होते हैं.
- दीर्घ संधि
- वृद्धि संधि
- गुण संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
- पूर्वरूप संधि
- पररूप संधि
1. दीर्घ संधि
जब किसी एक ही स्वर के हस्त(छोटा) या दीर्घ रूप के बाद उसका हट या दीर्घ रूप आए तब दोनों वर्णों के मेल से दीर्घ स्वर हो जाता है। इसे ही दीर्घ संधि कहते हैं। उदाहरण के लिए अ+अ भी आ हो जाएगा और अ+आ भी आ हो जाएगा.
- दिव्य + अनुभूति = दिव्यानुभूति
- क्रम + अनुसार = क्रमानुसार
- देह + अंत = देहांत
- दश + आनन = दशानन
- पर + आक्रम = पराक्रम
- शरण + आगत = शरणागत
- विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
- रेखा + अंकित = रेखांकित
- पुष्पा + अंजलि = पुष्पांजलि
- महा + आनंद = महानंद
- वार्ता + आलाप = वार्तालाप
- दया + आनंद = दयानंद
- अति + इव = अतीव
- कवि + इश = कवीश
- अभि + इष्ट = अभीष्ट
- समि + ईक्षा = समीक्षा
- हरि + ईश = हरीश
- मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर
- नारी + इंदु = नारींदु
- मही + इंद्र = महिंद्र
- रजनी + इंदु = रजनींदु
- रजनी + ईश = रजनीश
- नदी + ईश = नदीश
- प्रती + ईक = प्रतीक
- मु + उक्ति = मुक्ति
- भानु + उदय = भानूदय
- लघु + उत्तम = लघूत्तम
- लघु + ऊर्जा = लघूर्जा
- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
- सिंधु + ऊर्मि = सिंधूर्मी
- वधू + उत्सव = वधूत्सव
- भू + उत्सर्जन = भूत्सर्जन
- भू + ऊर्जा = भूर्जा
- वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
2. वृद्धि संधि
जब अ या आ के बाद ए या ऐ हो तब दोनों वर्णों के मेल से ऐ हो जाता है और जब ओ या ओ हो तो औ हो जाता है। इस मेल को वृद्धि संधि कहते हैं।
- जन + एकता= जनैकता
- एक + एक = एकैक
- देव + ऐश्वर्यम् = देवैश्वर्यम्
- मत + ऐक्य = मतैक्य
- गंगा + एषा = गंगैषा
- सदा + एव = सदैव
- महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
- राजा + ऐश्वर्य = राजैश्वर्य
- दंत + ओष्ठ = दंतौष्ठ
- वन + ओषधि = वनौषधि
- परम + औषध = परमौषध
- वन + औषध = वनौषध
- महा + ओज = महौज
- महा + ओजस्वी = महौजस्वी
- महा + औज= महौज
- महा + औदार्य = महौदार्य
3. गुण संधि
अ/आ का मेल इ/ई से होने पर ए हो जाता है, उ/ऊ से होने पर ओ तथा ऋ से होने पर अर् हो जाता है। इसे गुण संधि कहते हैं।
उदाहरण –
- उप + इंद्र = उपेंद्र
- स्व + इच्छा = स्वेच्छा
- सुर + ईश = सुरेश
- दिन + ईश = दिनेश
- यथा + इच्छम् = यथेच्छम्
- महा + इंद्र = महेंद्र
- रामा + ईश्वर = रामेश्वर
- लंका + ईश = लंकेश
- सूर्य + उदय = सूर्योदय
- पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
- जल + ऊर्मि = जलोर्मि
- सागर + ऊर्जा = सागरोर्जा
- महा + उत्तर = महोत्तर
- महा + उत्सव = महोत्सव
- महा + ऊर्जा = महोर्जा
- गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि
- देव + ऋषि = देवर्षि
- ब्रह्म + ऋषि = ब्रह्मर्षि
- महा + ऋषि = महर्षि
- राजा + ऋषि = राजर्षि
4. यण संधि
पहले शब्द के अंत में इ/ई, उ/ऊ , ऋ हो और दूसरे शब्द के आरंभ में कोई अन्य स्वर हो, तो दोनों के मेल से क्रमश: य,व,र हो जाता है। इसे यण संधि कहते हैं।
- अति + उत्तम = अत्युत्तम
- इति + आदि = इत्यादि
- अनु + अय = अन्वय
- सु + आगतम् = स्वागतम्
- मातृ + आनंद = मात्रानंद
- पितृ + आदेश = पित्रादेश
5. अयादि संधि
ए/ऐ या ओ/औ के बाद कोई स्वर आता है तो ए का अय, ऐ का आय तथा ओ का अव और औ का आव हो जाता है। तब उसे अयादि संधि कहते हैं।
- ने + अन = नयन
- चे + अन = शयन
- नै + अक = नायक
- गै + अक = गायक
- पो + अन = पवन
- भो + अन= भवन
- पौ + इक = पावक
- शौ + अक = शावक
6. पूर्वरूप संधि
जब ए और ओ के बाद अ आता है तो दोनों के स्थान पर पूर्वरूप (उल्टा एस ) हो जाता है।
उदाहरण –
- ते + अत्र = तेsत्र
- देवो + अपि = देवोsपि
7. पररूप संधि
प्र और उप उपसर्ग के बाद ए या ओ आते हैं, तो दोनों में मेल हो जाता है। वहां पररूप संधि होती है।
उदाहरण –
- प्र + एजते = प्रेजते
- उप + ओषधि = उपोषधि
स्वर अथवा व्यंजन का जब किसी व्यंजन के साथ मेल होने पर जो विकार या परिवर्तन उत्पन्न होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं. जैसे उदाहरण के लिए:
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ (क् + ग = ग)
- दिक् + अंबर = दिगंबर
व्यंजन संधि के प्रमुख नियम नीचे दिए गए हैं
यदि वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट, त, प) के बाद किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण (ग, घ, ज, झ, ड, ढ, द, ब, भ) य, र, ल, व, ह या कोई स्वर आए तो पहला वर्ण उसी वर्ग के तीसरे वर्ण में परिवर्तित हो जाता है।
उदाहरण के लिए क के स्थान पर ग, च के स्थान पर ज, ट के स्थान पर ड, त के स्थान पर द और प के स्थान पर ‘ब’ हो जाता है.
उदाहरण:
- दिक् + गज = दिग्गज
- संत् + गति = सद्गति
- अच् + अन्त = अजन्त
- षट् + आनन = षडानन
- दिक् + अंबर = दिगंबर
- सत् + आचार = सदाचार
- सुप् + सन्त = सुबन्त
- वाक् + ईश = वागीश
यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क, च, ट, त, प) के पश्चात कोई अनुनासिक व्यंजन (न् या म् वर्ण) आता है तो उनके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण (ड्, ञ्, ण्, न्, म्) हो जाता है।
उदाहरण:
- सत् + मार्ग = सन्मार्ग
- चित् + मय = चिन्मय
- तत् + मय = तन्मय
(क) यदि ‘त्’ के बाद ल् हो तो ‘त्’ ध्वनि ‘ल्’ में बदल जाती है।
उदाहरण:
- उत् + लेख = उल्लेख
- उत् + लास = उल्लास
- उत् + लंघन = उल्लंघन
(ख) यदि त् के बाद च् या छ् हो तो त् का च् हो जाता है।
उदाहरण:
- उत् + चारण = उच्चारण
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
(ग) यदि त् के बाद श आए तो त् का च् तथा श का छ हो जाता है।
उदाहरण:
- तत् + शिव = तच्छिव
- उत् + श्वास = उच्छवास
(घ) यदि त् के बाद ज या झ हो तो त् का ज् हो जाता है।
उदाहरण:
- सत् + जन = सज्जन
- उत् + ज्वल = उज्ज्वल
(ङ) यदि त् के बाद ट् या ठ् हो तो त् का ट् हो जाता है।
उदाहरण:
- पत् + टीका = पट्टीका
- वृहत् + टीका = वृहट्टीका
(च) यदि त के बाद ड् या ढ् हो तो त का ड् हो जाता है।
उदाहरण:
उत् + डयन = उड्डयन
(छ) त के बाद ह हो तो त का द और ह का ध हो जाता है।
उदाहरण:
- उत् + हार = उद्धार
- उत् + हत = उद्धत
उदाहरण:
- स्व + छंद = स्वच्छंद
- परि + छेद = परिच्छेद
उदाहरण:
- अभि + सेक = अभिषेक
- वि + सम = विषम
यदि ऋ, र और ष के बाद न हो तो न का ण हो जाता है। बीच में यदि कोई स्वर या व्यंजन हो तो भी न, ण में बदल जाता है; जैसे-
उदाहरण:
- राम + अयन = रामायण
- परि + मान = परिमाण
- प्र + मान = प्रमाण
(क) म के बाद यदि क् से म् तक कोई भी व्यंजन आए तो म उसी वर्ग के अंतिम वर्ण या अनुस्वार में बदल जाता है। म का वर्ण पंचम वर्ण या अनुस्वार बन जाता है।
- सम् + कल्प = संकल्प
- सम + पूर्ण = संपूर्ण, सम्पूर्ण
(ख) म से पहले म् हो तो द्वित्व हो जाता है।
उदाहरण:
- सम् + मति = सम्मति
- सम् + मुख = सम्मुख
(ग) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई भी वर्ण हो तो अनुस्वार हो होता है।
उदाहरण:
- सम + सार = संसार
- सम् + वाद = संवाद
- सम् + घार = संघार
विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं. उदाहरण के लिए:
- मन: + हर = मनोहर
- यश: + दा = यशोदा
विसर्ग संधि से जुड़े नियम निम्नलिखित हैं:
यदि विसर्ग से पहले अ हो तो विसर्ग के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण हो या य, र, ल, व, ह हो तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है।
उदाहरण:
- मनः + ज = मनोज
- पयः + धर = पायोधर
यदि विसर्ग के पूर्व ‘अ’, ‘आ’ के अतिरिक्त अन्य स्वर हो तथा विसर्ग के बाद कोई स्वर, किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व, ह हो तो विसर्ग का ‘र’ हो जाता है।
उदाहरण:
- निः + धन = निर्धन
- निः + जन = निर्जन
यदि विसर्ग के बाद च/छ/श हो तो विसर्ग का श् तथा त या स हो तो विसर्ग का स हो जाता है।
उदाहरण:
- नि: + चल = निश्चल
- दुः + साहस = दुस्साहस
- नमः + ते = नमस्ते
यदि विसर्ग से पूर्व अ/आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
उदाहरण:
- अतः+ एव = अतएव
- तप:+ स्वी = तपस्वी
यदि विसर्ग के बाद में र हो तो विसर्ग लुप्त हो जाता है तथा पूर्व स्वर दीर्घ हो जाता है।
उदाहरण:
- निः + रव = नीरव
- निः + रज = नीरज
यदि विसर्ग से पहले अ हो और विसर्ग के बाद क या प हो तो विसर्ग में परिवर्तन नहीं होता।
उदाहरण:
- प्रात: + काल = प्रातः काल
- अथः + पतन = अध:पतन
संधि एवं संधि-विच्छेद से जुड़े अन्य नियम
हिन्दी व्याकरण में कुछ ऐसी संधियाँ भी होती हैं जो ऊपर दी गई किसी भी श्रेणी में नहीं आती हैं और उनके लिए किसी प्रकार के स्पष्ट नियम नहीं बनाए गए हैं. ऐसी ही कुछ संधियों के उदाहरण नीचे दिए गए हैं.
1. जब, तब, कब, अब, सब, इत्यादि शब्दों के बाद में ‘ही’ आने पर ‘ह’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ब’ का लोप हो जाता है.
उदाहरण:
- तब + ही = तभी
- कब + ही = कभी
- जब + ही = जभी
- सब + ही = सभी
- अब + ही = अभी
2. जहाँ, कहाँ, यहाँ, वहाँ आदि शब्दों के बाद ‘ही’ आने पर अन्तिम ई पर अनुस्वार लग जाता है और ही (स्वर सहित) लुप्त हो जाता है.
उदाहरण:
- यहाँ + ही = यहीं
- जहाँ + ही = जहीं
- कहाँ + ही = कहीं
- वहाँ + ही = वहीं
3. कुछ परिस्थितियों में संस्कृत के र् लोप, दीर्घ और यण आदि सन्धियों के नियम हिन्दी में नहीं लागू होते हैं.
जैसे:
- अन्तर् + राष्ट्रीय = अन्तर्राष्ट्रीय
- उपरि + उक्त = उपर्युक्त
300+ संधि विच्छेद के उदाहरण (Example Sandhi Vichhed in Hindi)
यहाँ टेबल में हमने अकादमिक परीक्षाओं और सरकारी नौकरी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले अतिमहत्वपूर्ण 300 से ज्यादा शब्दों के संधि-विच्छेद उपलब्ध कराए हैं.
- ‘दिक् + विजय – दिग्विजय
- अजंत – अच् + अन्त
- अत्यल्प – अति + अल्प
- अत्याचार – अति + आचार
- अत्युक्ति – अति + उक्ति
- अत्युत्तम – अति + उत्तम
- अधरोष्ठ – अधर + ओष्ठ
- अधिकांश – अधिक + अंश
- अधीक्षक – अधि + ईक्षक
- अधीन – अधि + इन
- अधीश्वर – अधि + ईश्वर
- अध्यात्म – अधि + आत्म
- अनुषंगी – अनु + संगी
- अनूदित – अनु + उदित
- अन्त्येष्टि – अन्त्य + इष्टि
- अन्त्योदय – अन्त्य + उदय
- अन्वेषण – अनु + एषण
- अभ्यर्थना – अभि + अर्थना
- अभ्यागत – अभि + आगत
- अभ्यास – अभि + आस
- आग्नेयास्त्र – आग्नेय + अस्त्र
- आच्छादन – आ + छादन
- आज्ञानुपालन – आज्ञा + अनुपालन
- आनन्दातिरेक – आनन्द + अतिरेक
- आयुधागार – आयुध + आगार
- आविष्कार – आविः + कार
- उच्चारण – उत् + चारण
- उज्ज्वल – उत् + ज्वल
- उत्तमांग – उत्तम + अंग
- उदयाचल – उदय + अचल
- उद्वेग – उत् + वेग
- उन्नयन – उत् + नयन
- उन्मत् – उत् + मत
- उपदेष्टा – उप + दिष्टा
- उपर्युक्त – उपरि + उक्त
- उभ्युत्थान – अभि + उत्थान
- ऋग्वेद – ऋक् + वेद
- कंटकाकीर्ण – कंटक + आकीर्ण
- कथोपकथन – कथ + उपकथन
- कामायनी – काम + अयनी
- कारागार – कारा + आगार
- कुशासन – कुश + आसन
- क्षितीन्द्र – क्षिति + इन्द्र
- क्षुधोत्तेजन – क्षुधा + उत्तेजन
- गजेन्द्र – गज + इन्द्र
- गणेश – गण + ईश
- गत्यानुसार – गति + अनुसार
- गदाघात – गदा + आघात
- गायक – गै + अक
- गायन – गै + अन
- गिरीन्द्र – गिरि + इन्द्र
- गिरीश – गिरि + ईश
- गीतांजलि – गीत + अंजलि
- गुरूपदेश – गुरु + उपदेश
- गुर्वादेश – गुरु + आदेश
- गुर्वौदार्य – गुरु + औदार्य
- गौरीश – गौरी + ईश
- ग्रामांचल – ग्रामा + अंचल
- चतुस्सीमा – चतुः + सीमा
- चमूत्तम – चमू + उत्तम
- चिकित्सालय – चिकित्सा + आलय
- छत्रच्छाया – छत्र + छाया
- जगज्जनी – जगत् + जननी
- जगदम्बा – जगत् + अम्बा
- जगदाधार – जगत् + आधार
- जगद्गुरु – जगत् + गुरु
- जगन्नाथ – जगत् + नाथ
- जगन्मोहिनी – जगत् + मोहिनी
- जनार्दन – जन + अर्दन
- जनोपयोगी – जन + उपयोगी
- जलौध – जल + ओध
- जात्यभिमान – जाति + अभिमान
- जितेन्द्रिय – जित + इन्द्रिय
- ज्ञानोदय – ज्ञान + उदय
- तज्जन्य – तद् + जन्य
- तन्वंगी – तनु + अंगी
- तपोभूमि – तपः + भूमि
- तमोगुण – तमः + गुण
- तिरोहित – तिरः + हित
- तीर्थाटन – तीर्थ + अटन
- त्रिपुरारि – त्रिपुर + अरि
- त्र्यम्बक – त्रि + अम्बक
- दण्ड – दम् + ड
- दलितोत्थान – दलित + उत्थान
- दावानल – दाव + अनल
- दिग्ज्ञान – दिक + ज्ञान
- दिग्दिगन्त – दिक् + दिगन्त
- दिवसावसान – दिवस + अवसान
- दिवारात्र – दिवा + रात्रि
- दिवोज्योति – दिवः + ज्योति
- दीक्षान्त – दीक्षा + अन्त
- दीपावली – दीप +अवली
- दुग्धोपजीवी – दुग्ध + उपजीवी
- दुर्जन – दु: + जन
- दुर्दशा – दु: + दशा
- दुर्लभ – दु: + लभ
- दुश्चरित्र – दु: + चरित्र
- दुश्शासन – दु: + शासन
- दुस्साहस – दु: + साहस
- देवर्षि – देव + ऋषि
- देवालय – देव + आलय
- देवीच्छा – देवी + इच्छा
- देवौदार्य – देव + औदार्य
- देव्यागमन – देवी + आगमन
- देशान्तर – देश + अन्तर
- देशोपकार – देश + उपकार
- देहान्त – देह + अन्त
- धनुष्टंकार– – धनुः + टंकार
- धनैषी – धन + एषी
- धर्मात्मा – धर्म + आत्मा
- धर्माधिकारी – धर्म + अधिकारी
- धात्विक – धातु + इक
- धीरोद्धत – धीर + उद्धत
- ध्वन्यात्मक – ध्वनि + आत्मक
- ध्वंसावशेष – ध्वंस + अवशेष
- नभोमण्डल – नभः + मण्डल
- नमस्कार – नमः + कार
- नयनाभिराम – नयन + अभिराम
- नवांकुर – नव + अंकुर
- नवोढ़ा – नव + ऊढ़ा
- नवोदय – नव + उ
- नवोन्मेष – नव + उन्मेष
- नायक – नै + अक
- नारीश्वर – नारी + ईश्वर
- नाविक – नौ + इक
- निराशा – नि: + आशा
- निर्भय – निः + भय
- निर्मम – निः + मम
- निश्चय – नि: + चय
- निश्चल – निः + चल
- निष्कलुष – निः + कलुष
- निष्काम – निः + काम
- निष्कासन – निः + कासन
- निष्ठुर – निः + तुर
- निष्पाप – निः + पाप
- निष्पालक – निः + पालक
- निष्प्रभ – निः + प्रभ
- निष्प्रयोजन – निः + प्रयोजन
- निष्प्राण – निः + प्राण
- निस्सहाय – निः + सहाय
- निस्सार – निः + सार
- नीलोत्पल – नील + उत्पल
- परमानन्द – परम + आनन्द
- परमावश्यक – परम + आवश्यक
- परमेश्वर – परम + ईश्वर
- परमौषध – परम + औषध
- परिच्छेद – परि + छेद
- परीक्षा – परि + ईक्षा
- परोक्ष – पर + उक्ष
- परोपकार – पर + उपकार
- पर्यवसान – परि + अवसान
- पर्यावरण – परि + आवरण
- पवन – पो + अन
- पितॄण – पितृ + ऋण
- पुत्रैषणा – पुत्र + एषणा
- पुरुषोचित – पुरुष + उचित
- पुरोगामी – पुरः + गामी
- पुस्तकालय – पुस्तक + आलय
- पूर्णेन्द्र – पूर्ण + इन्द्र
- पृथ्वीश्वर – पृथ्वी + ईश्वर
- प्रतिकार – प्रति + कार
- प्रतिषेध – प्रति + सेध
- प्रतीक्षा – प्रति + ईक्षा
- प्रत्यभिज्ञ – प्रति + अभिज्ञ
- प्रत्युत्तर – प्रति + उत्तर
- प्रत्युपकार – प्रति + उपकार
- प्रसंगानुकूल – प्रसंग +अनुकूल
- प्राणायाम – प्राण + आयाम
- प्राणिविज्ञान – प्राणि + विज्ञान
- प्रियैषी – प्रिय + एषी
- फणीन्द्र – फणी + इन्द्र
- फलाहार – फल + आहार
- बहूद्देशीय – बहु + उद्देशीय
- बहूर्ज – बहु + उर्ज
- बालेन्दु – बाल + इन्दु
- ब्रह्मर्षि – ब्रह्म + ऋषि
- भग्नावशेष – भग्न + अवशेष
- भयाकुल – भय + आकुल
- भानूदय – भानु + उदय
- भारतेन्द्र – भारत + इन्द्र
- भावोद्रेक – भाव + उद्रेक
- भ्रूज़ – भ्रू + ऊर्ध्व
- मंजूषा – मंजु + उषा
- मधूत्सव – मधु + उत्सव
- मनीष – मन + ईष
- मनोग्राह्य – मनः+ ग्राह्य
- मनोवांछा – मनः + वांछा
- मन्वंतर – मनु + अन्तर
- मर्मान्तक – मर्म + अन्तक
- महर्षि – महा + ऋषि
- महात्मा – महा + आत्मा
- महामात्य – महा + अमात्य
- महीन्द्र – मही + इन्द्र
- महैश्वर्य – महा + ऐश्वर्य
- महोत्सव – महा + उत्सव
- महोदय – महा + उदय
- महोपकार – महा + उपकार
- महोपदेशक – महा + उपदेशक
- महोर्जा – महा + ऊर्जा
- महोर्मि – महा + ऊर्मि
- महौदार्य – महा + औदार्य
- मातृण – मातृ + ऋण
- मात्राज्ञा – मातृ + आज्ञा
- मात्रुपदेश – मातृ + उपदेश
- मानवेन्द्र – मानव + इन्द्र
- मानवोचित – मानव + उचित
- मित्रोचित – मित्र + उचित
- मुनीन्द्र – मुनि + इन्द्र
- मुरारि – मुर + अरि
- मृगेन्द्र – मृग + इन्द्र
- यजुर्वेद – यजुः + वेद
- यथेष्ट – यथा + इष्ट
- यशोगान – यशः + भूमि
- यशोदा – यशः + दा
- यावज्जीवन – यावत् + जीवन
- युगान्तर – युग + अन्तर
- युववाणी – युव + वाणी
- योगीश्वर – योगी + ईश्वर
- योगेन्द्र – योग + इन्द्र
- रचनात्मक – रचना + आत्मक
- रजनीश – रजनी + ईश
- रत्नाकर – रत्न + आकर
- रहस्योद्घाटन – रहस्य + उद्घाटन
- राजर्षि – राज + ऋषि
- रामायण – राम + अयन
- राष्ट्राध्यक्ष – राष्ट्र + अध्यक्ष
- रीत्यनुसार – रीति + अनुसार
- रोगोपचार – रोग + उपचार
- लक्ष्मीच्छा – लक्ष्मी + इच्छा
- लक्ष्मीश – लक्ष्मी + ईश
- लघूत्तम – लघु + उत्तम
- लघ्वोष्ठ – लघु + औष्ठ
- लोकैषणा – लोक + एषणा
- वधूपालम्भ – वधु + उपालम्भ
- वधूल्लास – वधू + उल्लास
- वनौषधि – वन + ओषधि
- वागीश – वाक् + ईश
- वाग्दान – वाक् + दान
- वाग्व्यापार – वाक् + व्यापार
- वारीश – वारि + ईश
- वार्तालाप – वार्ता + आलाप
- विकलांग – विकल + अंग
- विचाराधीन – विचार + अधीन
- विद्यानुराग – विद्या + अनुराग
- विद्योन्नति – विद्या + उन्नति
- विधायक – विधै + अक
- विवाहेतर – विवाह + इतर
- विश्वामित्र – विश्व + अमित्र
- विश्वैक्य – विश्व + एक्य
- वेदोक्त – वेद + उक्त
- व्याकरण – वि + आकरण
- व्याख्यान – वि + आख्यान
- शब्देतर – शब्द + इतर
- शरणार्थी – शरण + अर्थी
- शाकाहारी – शाक् + आहारी
- शाचक – शौ + अक
- शिरस्त्राण – शिरः + त्राण
- शिरोभूषण – शिरः + भूषण
- शिरोरेखा – शिरः + रेखा
- शुद्धोधन – शुद्ध + ओधन
- शुभेच्छा – शुभ + इच्छा
- श्रावण – श्री + अन
- श्रीश – श्री + ईश
- षडंग – षट् + अंग
- षड्दर्शन – षट् + दर्शन
- सख्यागमन – सखी + आगमन
- सच्चिदानन्द – सत् + चित + आनन्द
- सज्जन – सत् + जन
- सतीश – सती + ईश
- सत्यार्थी – सत्य + अर्थी
- सदवेग – सत् + वेग
- सदात्मा – सत् + आत्मा
- सदानन्द – सत् + आनन्द
- सद्धर्म – सत् + धर्म
- सन्तोष – सम् + तोष
- सन्त्रास – सम् + त्रास
- सन्निकट – सम् + निकट
- सन्मान – सत् + मान
- सप्तर्षि – सप्त + ऋषि
- समन्वय – सम् + अनु + अय
- सम्यक् + दर्शन – सम्यग्दर्शन
- सर्वोत्तम – सर्व + उत्तम
- सर्वोपरि – सर्व + उपरि
- सहानुभूति – सह + अनुभूति
- साधूपदेश – साधु + उपदेश
- साध्वाचार – साधु + आचार
- सारंग – सार + अंग
- सावधान – स + अवधान
- सावयव – स + अवयव
- साहित्येतर – साहित्य + इतर
- सिन्धूर्मि – सिन्धु + ऊर्मि
- सुखानुभूति – सुख + अनुभूति
- सुधीन्द्र – सुधी + इन्द्र
- सुरेन्द्र – सुर + इन्द्र
- सुषुप्त – सु + सुप्त
- सूर्योदय – सूर्य + उदय
- सूर्योष्मा – सूर्य + उष्मा
- सोद्देश्य – स + उद्देश्य
- सोल्लास – स + उल्लास
- स्थानापन्न – स्थान + आपन्न
- स्नेहाकांक्षी – स्नेह + आकांक्षी
- स्यादवाद – स्यात् + वाद
- स्वच्छ – सु + अच्छ
- स्वर्गारोहण – स्वर्ग + आरोहण
- स्वागत – सु + आगत
- स्वामिभक्त – स्वामी + भक्त
- स्वेच्छा – स्व + इच्छा
- स्वैच्छिक – स्व + ऐच्छिक
- हरीश – हरि + ईश
- हवन – हो + अन
- हस्तान्तरण – हस्त + अन्तरण
- हितेच्छा – हित + इच्छा
- हितैषी – हित + एषी
- हिमालय – हिम + आलय